लोहड़ी का पर्व 13/14 जनवरी 2025 को Kyo Manaya Jata

लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी 2025 को पूरे देश में मनाया जा रहा है। यह पर्व मूल रूप से सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश का पर्व है यानी सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का पर्व है। यह ऋतु परिवर्तन औऱ रबी की फसल कटकर आने का भी पर्व है जो हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। दरअसल यह सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में और रबी फसल के घर के आने की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व। लोहड़ी वह अंतिम दिन होता है जब सूर्य दक्षिणायन होते हैं और देवताओं की रात समाप्त होने वाली होती है। इसलिए नई सुबह के स्वागत में और शीत ऋतु को विदा करने की खुशी में भी लोग उत्साह सहित लोहड़ी का पर्व मनाते हैं।
वैसे लोहड़ी को लेकर कई मान्यताएं भी हैं जिसके अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस की भेजी गई एक राक्षसी आयी जो लोहिता कहलाती थी। भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना की भांति ही इस राक्षसी का भी अंत कर दिया और इसके उपलक्ष्य में लोगों ने अग्नि जलाकर गायन वादन और नर्तन किया। इस समय से ही लोहिया के मारे जाने की खुशी में लोहड़ी का पर्व मनाया जाने लगा।
इसमें फिर पंजाब का एक नया रंग शामिल हो गया जो दुल्ला भट्टी की बहादुरी और दिलेरी का रंग है। दुल्ला भट्टी एक बांका बहादुर था जो जुल्म के खिलाफ लाचार और कमजोरों की मदद करता था। इन्होंने सुंदरी और मुंदरी नाम की दो ब्राह्मण कन्याओं का विवाह करवाया था। इन कन्याओं का विवाह कहीं और होना था लेकिन वहां का मुगल सूबेदार उनसे शादी करना चाहता था। ऐसे में दुल्ला भट्टी ने लड़के के परिवार वालों को मनाकर लोहड़ी वाली रात में जंगल में आग जलाकर सुंदरी और मुंदरी की शादी करवाई थी और उनका कन्यादान भी किया था। और विदाई में कन्याओं को शक्कर दिया था। तब से भी मकर संक्रांति के एक दिन पहले दिलेर दुल्ला भट्टी को याद करके अग्नि के फेरे लेते हुए लोग दुल्ला भट्टी के गीत गाते हैं और गिद्दा और भंगड़ा नृत्य करते हैं।
लोहड़ी की आग दुखों का कर दे विनाश,
और उसकी रोशनी भरे जीवन में खुशियों का प्रकाश।
लोहड़ी की हार्दिक शुभकामना
आग की गर्माहट में है प्यार का एहसास ,
लोहड़ी का त्योहार लाए हमारे जीवन में मिठास। लोहड़ी 2025 की ढेर सारी शुभकामनाएं
लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रमुख और पारंपरिक त्योहार है. यह पर्व हर साल 13 जनवरी को बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है. मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में इसे बड़ ही धूमधाम से मनाया जाता है. लोहड़ी का त्योहार फसल की कटाई और बुआई की खुशी में मनाया जाता है. आइए आपको लोहड़ी के पर्व का महत्व बताते हैं.
पंजाब में फसल की कटाई के दौरान लोहड़ी को मनाने का विधान रहा है और यह मूल रूप से फसलों की कटाई का उत्सव है। इस दिन रबी की फसल को आग में समर्पित कर सूर्य देव और अग्नि का आभार प्रकट किया जाता है. आज के दिन किसान फसल की उन्नति की कामना करते हैं।
लोहड़ी का पर्व मनाने के पीछे मान्यता है कि आने वाली पीढियां अपने रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं को आगे ले जा सकें। जनवरी माह में काफ़ी ठंड होती है ऐसे में आग जलाने से शरीर को गर्मी मिलती है वहीं गुड़, तिल, गजक, मूंगफली आदि के खाने से शरीर को कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं। लोहड़ी शब्द की उत्पति तीन शब्दों से मिलकर हुई है, इसमें ‘ल’ से लकड़ी, ओ से उपले, और डी से रबड़ी यह तीनों ही इस पर्व का मुख्य आकर्षण होते हैं। लोहड़ी के अवसर पर नवजात शिशु और नव विवाहित महिलाओं को आशीष दिया जाता हैं।
लोहड़ी पंजाब एवं हरियाणा का प्रसिद्ध त्यौहार है, लेकिन अब इस पर्व को देश के अन्य हिस्सों में भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं, जिससे फसल के उत्पादन में वृद्धि हो।
इस दिन पंजाब के कुछ भागों में पतंगें उड़ाने का भी रिवाज है।
लोहड़ी उत्सव के दौरान बच्चे घर-घर जाकर लोकगीत गाते हैं और लोग उन्हें मिठाई और पैसे देते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन बच्चों को खाली हाथ लौटाना उचित नहीं माना गया है, इसलिए उन्हें चीनी, गजक, गुड़, मूँगफली तथा मक्का आदि दिया जाता है, इसे ही लोहड़ी कहते है।
इसके पश्चात संध्या के समय सभी लोग एकत्र होकर आग जलाते है और लोहड़ी को सभी में बांटेते हैं। संगीत और नृत्य के साथ लोहड़ी का जश्न मनाते हैं।
रात को सरसों का साग,मक्के की रोटी और खीर आदि सांस्कृतिक भोजन को खाकर लोहड़ी की रात का लुत्फ़ लिया जाता है।
लोहड़ी के पर्व से सम्बंधित एक पौराणिक कथा प्रसिद्द है। लोहड़ी के दिन गाये जाने वाले लोकगीतों में दुल्ला भट्टी के नाम का जिक्र किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि एक बार पंजाब में मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में दुल्ला भट्टी नाम का लुटेरा रहता था। वह अमीर लोगों से धन लूटकर गरीबों में बांट देता था। इसके साथ ही उसका एक अभियान ओर था कि ऐसी गरीब हिन्दू, सिख लड़कियों के विवाह में मदद करना जिनके ऊपर शाही ज़मीदारों तथा शासकों की बुरी नज़र होती थी, जिन्हे अगवा करके लोग गुलाम बनाकर दासों के बाजार में बेच दिया जाता था। ऐसी लड़कियों के लिए दुल्ला भट्टी वर ढूंढता था और उनका कन्यादान करता था।
एक दिन दुल्ला भट्टी को सुंदरी और मुंदरी नाम की दो गरीब और रूपवान बहनों के बारे में पता चला जिन्हें ज़मीदार अगवाकर अपने साथ ले आया, उस समय उनका चाचा उनकी रक्षा करने में असमर्थ था। ऐसी स्थिति…
सुंदर मुंदरिए हो!
तेरा कौन विचारा हो?
दुल्ला भट्टी वाला हो!
दुल्ले ने धी ब्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो।
कुड़ी दे बोझे पाई हो,
कुड़ी दा लाल पटाका हो,
कुड़ी दा शालू पाटा हो।
शालू कौन समेटे हो?
चाचा गाली देसे हो,
चाचे चूरी कुट्टी हो।
जमींदारां लुट्टी हो,
जमींदारा सदाए हो,
गिन-गिन पोले लाए हो।
इक पोला घिस गया,
जमींदार वोट्टी लै के नस्स गया हो!
पा नी माई पाथी,
तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी।
हाथी उत्ते जौं,
तेरे पुत्त पोत्रे नौ!
नौंवां दी कमाई,
तेरी झोली विच पाई।
टेर नी माँ टेर नी,
लाल चरखा फेर नी!
बुड्ढी साँस लैंदी है,
उत्तों रात पैंदी है।
अंदर बट्टे ना खड़काओ,
सान्नू दूरों ना डराओ!
चारक दाने खिल्लां दे,
पाथी लैके हिल्लांगे।
कोठे उत्ते मोर,
सान्नू पाथी देके तोर!
कंडा कंडा नी लकड़ियो,
कंडा सी।
इस कंडे दे नाल कलीरा सी।
जुग जीवे नी भाबो,
तेरा वीरा नी।
पा माई पा,
काले कुत्ते नूं वी पा।
काला कुत्ता दवे वदाइयाँ,
तेरियां जीवन मझियाँ गाईयाँ।
मझियाँ गाईयाँ दित्ता दूध,
तेरे जीवन सके पुत्त।
सक्के पुत्तां दी वदाई,
वोटी छम-छम करदी आई।
साड़े पैरां हेठ रोड,
सानूं छेती-छेती तोर!
साड़े पैरां हेठ दहीं,
असीं मिलना वी नईं।
साड़े पैरां हेठ परात,
सानूं उत्तों पै गई रात!